हिंदुस्तान के एक छोटे से शहर में रहने वाले अकरम चाचा , जो एक कमरे वाले छोटे से घर में रेहते थे , उनके मोहल्ले के सभी लोग उनकी बहुत इज़्ज़त करते ,लोगों के बीच अकर्म चाचा इस तरह से रेहते थे मानो उनके ही परिवार का कोई सदस्य हो , सभी लोग अपनी हरछोटी बड़ी परेशानी में अकर्म चाचा से ही मशवरा लेते ओर उनके कहे अनुसार काम करत।
अकरम चाचा मोहल्ले के बच्चों के बीच भी बहुत मशहूर थे। हर दिन मोहल्ले के सभी बच्चे एक साथ शाम के वक्त अकरम चाचा सेकहानियाँ सुनने के लिए जाया करते थे। अकरम चाचा भी हर दिन शाम के वक्त बच्चों का इंतजार करते और वे उन्हें तरह तरह कीकहानियाँ सुनाया करते थे। 1 दिन एक नवीं क्लास में पढ़ने वाला बच्चा अकरम चाचा से जिद करने लगा कि वे उन्हें अपनी जिंदगी कीकहानी सुनाई। पहले तो अकरम चाचा ने बच्चे को मना कर दिया लेकिन बच्चे के बार बार ज़िद करने पर अकरम चाचा अपनी जिंदगीकी कहानी सुनाने के लिए मान गए।
अकरम चाचा ने कहानी कुछ इस तरह से शुरू किए।
मैं अपने परिवार का सबसे छोटा बेटा, मेरे दो बहन और दो भाई। हम सब दिल्ली जैसे बड़े शहर में अपनी अम्मी अब्बू के साथ एक बहुतही बड़े घर में रहा करते थे। हमारी जिंदगी खुशियों से भरी हुई थी। बड़ा घर, बड़ी गाड़ी और हम सब दिल्ली के बहुत ही मशहूरऑक्सफोर्ड स्कूल में पढ़ा करते थे।
मैं छठी क्लास का इम्तिहान पास कर सातवीं क्लास में गया ही था। मेरा बड़ा भाई आठवीं में था और दोनों बड़ी बहने एक ९ क्लास मेंऔर एक दसवीं की परीक्षा देने वाली थी। हमारी जिंदगी ने ऐसा रुख मोड़ा जिसके बाद सब कुछ बदल गया।
मेरे अब्बू को ब्लड कैंसर हो गया था , और उन्हें इस बात का पता तब चला जब ब्लड कैंसर अपनी आखिरी स्टेज में पहुँच चुका था। अब्बूकी तबियत दिन ब दिन बिगड़ती गई,डॉक्टर और हॉस्पिटल के चक्कर लगाते लगाते घर में रखा सारा पैसा धीरे धीरे खतम होने लगा , अब्बू बीमार थे इस बात का फ़ायेदा उनके बिज़्नेस पार्ट्नर ने खूब उठाया ओर धोके से सारा बिज़्नेस अपने नाम पर कर लिया , बीमारी केइलाज के लिए बहुत पैसों की जरूरत थी। देखते ही देखते हमारा बड़ा सा घर और गाडी भी बिक गया , अब तो नौबत यहाँ तक आ गईकि हमें हमारे स्कूल से भी निकाल दिया गया क्योंकि हमारा फीस जमा नहीं हुआ था। घर के हालात दिन ब दिन बिगड़ती गई। अम्मीअब्बू को लेकर बहुत परेशान और बीमार रहने लगीं। अम्मी को भी हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत होने लगी। घर की और हम सब कीऐसी हालत देखकर हमारे दादा दादी ने हमें दिल्ली से यहाँ बुला लिया।
अब्बू का इलाज करवाने के लिए अम्मी और अब्बू दिल्ली में ही रुके रहे। मगर हम सब भाई बहन अपने चाचा के साथ दादा दादी के घरआ गये। हमारी पढ़ाई तो बिल्कुल ही छूट चुकी थी। उधर, डॉक्टरों ने भी कह दिया कि अब इलाज नहीं हो सकता कैंसर अपने लास्टस्टेज को पहुँच चुका था। लाख कोशीश करने के बाद भी अब्बू का इलाज नहीं हो पाया। आखिर कार दादा दादी ने अब्बू और अम्मी कोभी अपने पास बुला लिया। दादा दादी बहुत बूढ़े हो चूके थे और अब अब्बू कि इस तरह के हालात को देखकर उन्होंने फैसला किया,कीजल्द से जल्द दोनों बहनों की शादी करा देनी चाहिए। हमारे ही रिश्तेदार में दो अच्छे लड़कों को देखकर अब्बू ने 10 दिन के अंदर अंदरदोनों बहनों की शादी करवा दी।
मैं और मेरा बड़ा भाई हम दोनों एक गवर्नमेंट स्कूल के पढ़ने लगे। दिल्ली से आने के तीन महीने के बाद ही अब्बू इस दुनिया से चले गए।जैसे तैसे दो सालों तक हमारी जिंदगी दादा दादी के साथ गुजरी। और फिर 1 दिन दादा का अभी इस दुनिया से गुजर हो गया। दादा केजाने के बाद हमारे चाचा ने भी अपना रंग बदल लिया। वह बार बार दादी के पास आकर कहते हैं कि वो हम सबकी जिम्मेदारी नहीं उठासकते। आखिरकार दादा दादी वाले घर से निकलकर हम इस छोटे से घर में आकर रहने को मजबूर हो गए। एक तो अम्मी की तबियतइतनी ख़राब रहती थी पर मेरा और मेरे भाई का खयाल रखने के लिए अम्मी सिलाई का काम करना शुरू कर दी। अम्मी को दिन रातकाम करते हुए देख मुझे और मेरे भाई को बहुत ख़राब लगने लगा। फिर हमने फैसला किया कि अब हम पढ़ाई नहीं करेंगे। किसी काम मेंलग जाएंगे।
अम्मी हमें बार बार समझती रही कि वह कैसे भी घर चला लेगी ,हमें अपनी पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए।मगर हमसे अम्मी की हालत देखीनहीं जा रही थी इसलिए हम दोनो भई ने पढ़ाई छोड़ एक दुकान में काम पकड़ लिए। जब तक दादी ज़िंदा रही वो चुपके चुपके हमारीमदद करती रही लेकिन उनके जाने की बाद हमारे चाचा ने हमें एक बार भी नहीं पूछा। हमारी जिंदगी अर्श से फर्श पर आ चुकी थी। बसएक बात की ख़ुशी थी की हमारी कि हमारी दोनों बहनें अपने अपने ससुराल में बहुत खुश थी।
बचपन में ही पढ़ाई छूट जाने की वजह से ,हम कभी अपनी जिंदगी में ज्यादा तरक्की नहीं कर पाए। हमेशा छोटे मोटे काम करके हीहमारी ज़िन्दगी गुजरती रहीं।
अपनी जिंदगी की दुख भरी कहानी सुनाते हुए अकरम चाचा की आँखों से आंसू गिरने लगे। उनके आँखों से गिरते हुए आंसुओं कोदेखकर बच्चों ने कहा कि बस चाचा रहने दीजिए, अब और मत सुनाइए। बच्चों की ऐसी मोहब्बत देखकर अकरम चाचा ने उन बच्चों कोअपने गले से लगा लिया।और कहने लगे ये तुम बच्चों का प्यार ही मेरी असली दौलत है मुझे और ज़िंदगी से कुछ नहीं चाहिए ।
Moral of this Inspirational short story is:-
ज़िंदगी कभी भी बादल सकती है। पर इंसान को अपने अच्छे अख़लाक़ कभी नहीं बदलने चाहिए।
ज़िंदगी भले ही अर्श से फ़र्श पर आ जाए मगर आपके अच्छे अख़लाक़ की वजह से आप लोगों के दिलों में राज कर सकते है ।
8 Comments
Very sad story 👍👍
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteWow
ReplyDeleteGood nd emotional story
ReplyDelete100/-
ReplyDelete💯
ReplyDeleteWoww amazing
ReplyDeleteNice
ReplyDeletePlz do not put any negative comment.